लेज़र सर्जरी की सीमाएँ क्या हैं?

लेज़र सर्जरी की सीमाएँ क्या हैं

लेज़र सर्जरी की सीमाएँ क्या हैं?

टेक्नोलॉजी का विस्तार होने के बाद से, लगभग हर कोई, बच्चा, जवान या बूढ़ा – अपना अधिकतर समय मोबाइल, टेलीविजन या लैपटॉप स्क्रीन के सामने व्यतीत करता है। स्क्रीन के सामने अत्यधिक समय बिताने, स्क्रीन और आँखों के बीच सही दूरी का ख्याल ना रखने, आँखों में चोट लगने, सिगरेट और शराब का सेवन करने, सूरज या अल्ट्रावायलेट किरणों के सम्पर्क में आने और कई कारणों से आँखों में कई तरह तरह की समस्याएं पैदा होती हैं जो आँखों की दृष्टि यानी इंसान के देखने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। इन्ही समस्याओं में शामिल हैं  एस्टिग्मेटिज्म, मायोपिया और हाइपरोपिया। इन समस्याओं का उपचार करने के लिए नेत्र विशेषज्ञ लेज़र नेत्र सर्जरी का इस्तेमाल करते हैं जिसे आम भाषा में लेज़र सर्जरी या लेसिक सर्जरी कहते हैं। आज इस ब्लॉग में हम लेज़र सर्जरी की सीमाएँ यानी लेसिक सर्जरी की सीमाओं के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे।

अपवर्तक त्रुटियों से जुड़ी लेज़र नेत्र सर्जरी की सीमाएं

मायोपिया, हाइपरोपिया और एस्टिग्मेटिज्म को अपवर्तक त्रुटि भी कहते हैं। मायोपिया से पीड़ित व्यक्ति को पास की वस्तुएं साफ़ और दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई पड़ती हैं। हाइपरोपिया से ग्रसित व्यक्ति को दूर की वस्तुएं साफ़, लेकिन पास की वस्तुएं धुंधली दिखाई देती हैं तथा एस्टिग्मेटिज्म के मामले में मरीज़ को पास और दूर – दोनों ही जगहों की वस्तुएं धुंधली दिखाई पड़ती हैं। आँखों की यें समस्याओं का इलाज कई तरह से किया जाता है जिसमें चश्मा और कॉन्टेक्ट लेंस शामिल हैं।

हालाँकि, जब इन दोनों से कोई फायदा नहीं होता है या फिर मरीज़ अपने चश्मे या कॉन्टेक्ट लेंस से स्थायी रूप से छुटकारा पाना चाहता है तो वह लेज़र सर्जरी यानी लेसिक सर्जरी का चयन करता है। चश्मा हटाने में प्रयुक्त लेसिक लेज़र सर्जरी का काम कॉर्निया को नया आकार देना है, ताकि आँखों में जाने वाली रौशनी रेटिना पर पूर्ण रूप से केंद्रित हो और मरीज़ को आसपास की चीज़ें साफ़-साफ़ दिखाई दें।

लेज़र सर्जरी एक आसान एवं सुरक्षित उपचार है, लेकिन इसकी कुछ अपनी सीमाएं भी हैं। दृष्टि से संबंधित समस्या से पीड़ित हर व्यक्ति के लिए यह उपयुक्त नहीं है। आप लेज़र सर्जरी के लिए उपयुक्त कैंडिडेट हैं या नहीं, इस बात की पुष्टि जांच के आधार पर की जाती है। अगर आप इन समस्याओं से हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहते हैं तो आज ही हमारे डॉक्टर से मिलें और अपनी समस्या का सटीक जांच और लेज़र इलाज करवाएं।

 

कॉर्निया की मोटाई और आकार से जुड़ी लेज़र नेत्र सर्जरी की सीमाएं

लेसिक सर्जरी के लिए कॉर्निया पर्याप्त मोटा होना चाहिए, क्योंकि इससे सर्जरी के जोखिम का खतरा कम और सफलता की संभावना अधिक होती है। भारतीय मूल के लोगों की कॉर्निया की मोटाई 530 माइक्रोन या 0.53 मिलीमीटर होती है, जो कि इस सर्जरी के लिए उचित माना जाता है। हालांकि, कॉर्निया की मोटाई 530 माइक्रोन से अधिक होने पर डॉक्टर चश्मा निर्धारित करते हैं। जब किसी कॉर्निया की मोटाई 495 माइक्रोन से कम होती है तो उसे पतला माना जाता है। ऐसे में लेसिक सर्जरी का सुझाव नहीं दिया जाता है, क्योंकि सर्जरी के दौरान या बाद में जटिलताओं का खतरा होता है। इतना ही नहीं, कॉर्निया का अत्यधिक सपाट या खड़ा होना भी लेज़र सर्जरी की सीमाएँ निर्धारित कर सकता है।

  1. सपाट कॉर्निया: लेज़र सर्जरी की सीमाएँ अनेक हैं और इसमें सपाट कॉर्निया की स्थिति भी शामिल है। विशेषज्ञ के अनुसार, एक मनुष्य के आँख की कॉर्निया की सामान्य वक्रता 44.0D होती है। जब किसी कॉर्निया की वक्रता 41.0D या उससे कम होती है तो उसे सपाट कॉर्निया की कैटेगरी में रखा जाता है। लेज़र सर्जरी यानी लेसिक सर्जरी के दौरान फ्लैप को ऊपर उठाकर कॉर्निया को नया आकार दिया जाता है, लेकिन कॉर्निया सपाट होने पर उठाए गए फ्लैप का आकार छोटा हो सकता है, जिसके कारण बाद में मरीज़ को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  2. खड़ी कॉर्निया: जब एक कॉर्निया की वक्रता 48.5D से अधिक होता है तो उसे खड़ी कॉर्निया कहते हैं, जो अक्सर अत्यधिक अपवर्तक सुधारों के कारण होता है। यह समस्या गोलाकार विपथन (spherical aberration) और विकृत यानी धुंधली दृष्टि का कारण बन सकता है। लेसिक सर्जरी जैसी दृष्टि सुधार प्रक्रियाओं के लिए उपयुक्तता निर्धारित करते समय इस पर विचार करना महत्वपूर्ण है। लेज़र सर्जरी की सीमाएँ पर ध्यान दिए बिना खड़ी कॉर्निया का उपचार करना कई समस्याओं का कारण बन सकता है।
  3. कॉर्निया कमज़ोर होना: जब कॉर्निया कमज़ोर हो जाती है तो उसे मेडिकल भाषा में केराटोकोनस कहते हैं। यह इंट्राओकुलर दबाव के कारण अनियमित रूप से बाहर निकल जाता है, जिसके कारण आँखों में जाने वाली रौशनी रेटिना पर केंद्रित होने के बजाय, चारों तरफ बिखर जाती है। नतीजतन, मरीज़ को वस्तुएं साफ़-साफ़ देखने में परेशानी होती है। इस स्थिति में, लेसिक सर्जरी से कॉर्निया के वक्रता को पतला बनाया जाता है ताकि रौशनी, रेटिना पर केंद्रित हो सके। हालाँकि, कॉर्निया कमज़ोर होने पर लेज़र सर्जरी यानी लेसिक सर्जरी करने पर ऑप्टिकल विकृतियाँ और दृष्टि खोने का ख़तरा हो सकता है। यही कारण है कि कॉर्निया कमज़ोर होने पर, लेज़र सर्जरी की सीमाएँ को ध्यान में रखते हुए नेत्र रोग विशेषज्ञ इस सर्जरी का चयन करते हैं।

उम्र और स्थिरता से जुड़ी लेज़र नेत्र सर्जरी की सीमाएं

मरीज़ की आयु भी लेज़र नेत्र सर्जरी में एक कारक बन सकती है। लेसिक सर्जरी हर उम्र के मरीज़ के लिए उपयुक्त नहीं है।

  1. न्यूनतम आयु – 18 वर्ष: लेज़र सर्जरी की सीमाएँ को ध्यान में रखते हुए, डॉक्टर उपचार से पहले मरीज़ की उम्र की पुष्टि करते हैं। अधिकांश लोगों के चश्मे का प्रिस्क्रिप्शन 18 साल की उम्र तक स्थिर हो जाता है, लेकिन कुछ लोगों में यह अलग-अलग होता है। स्थिरता 16 की शुरुआत में या 22 की उम्र के अंत में हो सकती है। 16 की उम्र में ग्लास प्रिस्क्रिप्शन स्थिर होने के बावजूद भी लेज़र सर्जरी यानी लेसिक सर्जरी के प्रति सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है, क्योंकि भविष्य में होने वाले बदलाव अप्रत्याशित होते हैं। आमतौर पर, -1.0 से -3.0 तक के प्रिस्क्रिप्शन 18 से पहले स्थिर हो सकते हैं, -3.0 से -6.0 तक 20 तक, और -6.0 से -9.0 तक 22 तक स्थिर हो सकते हैं। 22 साल उम्र होने के बाद, हर मरीज़ में स्थिरता अलग-अलग होती है।
  2. आदर्श आयु – 20 से 40 वर्ष के बीच: अगर आप लेसिक सर्जरी कराना चाहते हैं तो डॉक्टर के साथ-साथ आपको भी लेज़र सर्जरी की सीमाएँ की अच्छी समझ होनी चाहिए। भारत में 20 से 30 के बीच की उम्र को लेसिक सर्जरी के लिए आदर्श आयु माना जाता है। क्योंकि इस दौरान, लगभग हर व्यक्ति में मायोपिया, हाइपरोपिया या एस्टिग्मेटिज्म के कारण इस्तेमाल किया जा रहे चश्मे या कॉन्टेक्ट लेंस से छुटकारा पाने की इच्छा होती है। साथ ही, आँखों की शक्ति भी स्थिर हो जाती है। 20-22 की उम्र में लेसिक सर्जरी करने से पहले नेत्र रोग विशेषज्ञ कुछ ख़ास जांच करते हैं ताकि इस बात की पुष्टि हो सके कि मरीज़ सर्जरी के लिए उपयुक्त है।
  3. अधिकतम आयु – कोई सीमा नहीं: आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि 40 की उम्र आते-आते लगभग सभी लोग चश्मे को अपनी पहचान एक रूप में अपना लेते हैं। हालांकि, शोध से यह बात सामने आई है कि, लेसिक सर्जरी की सफलता दर को ध्यान में रखते हुए अब 40, 45, 50, 60 या उससे भी अधिक उम्र के लोग भी इस प्रक्रिया का चुनाव कर रहे हैं। लेज़र सर्जरी की सीमाएँ ही इसकी विश्वसनीयता का निर्देशन करती हैं।

स्वास्थ्य स्थितियों से जुड़ी लेज़र नेत्र सर्जरी की सीमाएं

गर्भवती या स्तनपान करा रही महिलाओं के लिए लेसिक सर्जरी उपयुक्त नहीं माना जाता है, क्योंकि इस दौरान महिला के शरीर में हार्मोनल उतार-चढ़ाव होते हैं। ऐसी स्थिति में लेसिक सर्जरी कराने पर उन्हें अनेक जोखिम और जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। गर्भावस्था या स्तनपान भी लेज़र सर्जरी यानी लेसिक सर्जरी की सीमाओं का एक मुख्य कारक हो सकता है।

ड्राई आई सिंड्रोम से जुड़ी लेज़र आई सर्जरी की सीमाएं

लेज़र नेत्र सर्जरी, जैसे कि लेसिक सर्जरी, ड्राई आई सिंड्रोम का कारण बन सकता है जो आंसू के उत्पादन और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। नतीजतन, आँखों में सूखापन और असुविधा हो सकती है। इस दुष्प्रभाव को कम करने और लेज़र नेत्र सर्जरी कराने वालों के लिए बेहतरीन परिणाम सुनिश्चित करने के लिए प्रीऑपरेटिव मूल्यांकन और पोस्टऑपरेटिव प्रबंधन प्लान महत्वपूर्ण हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

लेज़र सर्जरी के बाद कितनी देर तक मेरी आँखों को आराम देना चाहिए?

लेज़र सर्जरी के बाद, डॉक्टर आमतौर पर अगले 3-6 दिनों आराम करने का सुझाव देते हैं। साथ ही, सर्जरी के बाद अगले कुछ दिनों तक गाड़ी चलाने, आँखों पर ज़ोर देने वाली गतिविधियों से बचने और सूरज की रौशनी या पराबैंगनी किरणों से बचने के लिए चश्मा पहनने का सुझाव देते हैं।

 

लेज़र सर्जरी के दौरान कितनी देर तक आपको ऑपरेशन रूम में रहना पड़ता है?

आमतौर पर लेज़र सर्जरी को पूरा होने में 20-30 मिनट का समय लगता है। हालाँकि, मरीज़ के समग्र स्वास्थ्य के आधार पर इसमें थोड़ा बहुत बदलाव आ सकता है।

 

लेसिक लेज़र सर्जरी खर्च कितना आता है?

भारत में लेसिक सर्जरी का खर्च 25,000-50,000 रुपए के बीच आता है, लेकिन क्लिनिक की विश्वसनीयता और अन्य कारकों के आधार पर इसमें बदलाव आ सकता है।

 

लेज़र सर्जरी करवाने के बाद मुझे किस प्रकार के देखभाल की आवश्यकता होती है?

लेज़र सर्जरी के बाद आपको कुछ बातों का ख़ास ध्यान देना पड़ता है जैसे कि:

  • घर पर आराम करना
  • आँखों को आराम देना
  • निर्धारित दवाओं का सेवन और ड्रॉप को आँखों में डालना
  • उन कामों को करने से बचना जिससे आँखों पर दबाव पड़ता हो
  • सूरज की रौशनी या यूवी किरणों से बचने के लिए चश्मा पहनना
  • खुजली होने पर आँखों को मलने या छूने से बचना
  • अत्यधिक परेशानी होने पर अपने डॉक्टर से मिलना

 

कब करवाएं यह सर्जरी?

मायोपिया, हाइपरोपिया या एस्टिग्मेटिज्म होने पर नेत्र रोग विशेषज्ञ लेसिक सर्जरी का सुझाव देते हैं। इन तीनों ही स्थितियों में मरीज़ की दृष्टी कमज़ोर हो जाती है।

 

क्या लेसिक आई सर्जरी के कोई दुष्प्रभाव हैं?

हर सर्जरी की तरह, लेसिक सर्जरी के भी कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं जैसे कि आँखों में धुंधलापन और बेचैनी होना, संक्रमण होना और आँखों में सूखापन होना आदि, लेकिन उचित देखभाल की मदद से इसके ख़तरे को कम किया जा सकता है।

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